राम – लक्ष्मण – परशुराम संवाद Question Answers Class 10

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राम – लक्ष्मण – परशुराम संवाद: प्रश्न-अभ्यास (हल सहित)

प्रश्न 1 – परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन – कौन से तर्क दिए ? (CBSE 2015)

उत्तर – परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए:

  • हमने अपने बचपन में कई धनुष तोड़े हैं, लेकिन उस समय कभी किसी ने भी क्रोध नहीं किया।
  • हमारी दृष्टि में सभी धनुष एक समान हैं, तो फिर आपके इस धनुष के प्रति इतना मोह क्यों है?
  • एक धनुष के टूटने से क्या हानि और लाभ होता है?
  • श्रीराम जी ने तो इस धनुष को नए धनुष के धोखे में देखा था। जैसे ही वे इसे छू लिए, वह टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं है। इस तरह से लक्ष्मण ने राम को निर्दोष बताया।

प्रश्न 2 – परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – परशुराम के क्रोध करने पर राम-लक्ष्मण की प्रतिक्रिया के आधार पर उनकी निम्नलिखित विशेषताएँ पता चलती हैं:

राम की विशेषताएँ –

(क) राम का स्वभाव अत्यंत विनम्र था।

(ख) राम निडर, साहसी, धैर्यवान तथा मृदुभाषी थे।

(ग) वे बड़ों ओर श्रेष्ठजनों के प्रति आज्ञाकारी थे।

लक्ष्मण की विशेषताएँ –

(क) लक्ष्मण में वाक्पटुता कूट-कूटकर भरी थी।

(ख) उनका स्वभाव तर्क शील था।

(ग) वे बुद्धिमान तथा व्यंग्य करने में निपुण थे।

(घ) वे प्रत्युत्पन्नमति थे।

(ड़) वे वीर किंतु क्रोधी स्वभाव के थे।

हम निम्नलिखित तरीके से भी विशेषताएँ बताया सकते हैं:

राम के चरित्र की विशेषताएँ:

शक्तिशाली, मर्यादा से परिपूर्ण, विनम्र, शांतिप्रिय, मृदुभाषी, धैर्यवान, बड़ों का आदर करने वाले।

लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ:

साहसी, शक्तिशाली, क्रोधी, व्यंग्यपूर्ण भाषा का प्रयोग करने वाले।

प्रश्न 3 – लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर –

लक्ष्मण – हे मुनि ! बचपन में हमने खेल – खेल में ऐसे बहुत से धनुष तोड़े हैं , तब तो आप कभी क्रोधित नहीं हुए थे। फिर इस धनुष के टूटने पर इतना क्रोध क्यों कर रहे हैं ?

परशुराम – अरे राजा के पुत्र ! मृत्यु के वश में होने से तुझे यह भी होश नहीं कि तू क्या बोल रहा है ? तू सँभल कर नहीं बोल पा रहा है । समस्त विश्व में विख्यात भगवान शिव का यह धनुष क्या तुझे बचपन में तोड़े हुए धनुषों के समान ही दिखाई देता है ?

लक्ष्मण – हे मुनिवर! हम जानते हैं कि आप महान् योद्धा हो, आप अपने फरसे को बार-बार मुझे मत दिखाइए, आपका यह कार्य ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि आप फूँक से पहाड़ उड़ाने की निरर्थक कोशिश कर रहे हैं। यहाँ पर कोई कुम्हडे़ के फल के समान नाजुक और कमजोर नहीं, जो डर जाये।

प्रश्न 4 – परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या – क्या कहा , निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए। (CBSE 2008, 2015)

बाल ब्रह्मचारी अति कोही बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥

उत्तर – परशुराम ने अपने बारे में कहा कि मैं बाल ब्रह्मचारी और स्वभाव से बहुत ही क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का नाश करने वाले के रूप में संसार में प्रसिद्ध हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर अनेक बार पृथ्वी के राजाओं को पराजित किया, उनका वध किया और जीती हुई पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे दी। उन्होंने कहा कि ”मेरा फरसा बहुत ही भयानक है। इससे मैंने सहस्त्राबाहु की भुजाएँ काट दीं थीं । यह फरसा इतना कठोर है कि यह गर्भ के बच्चों की भी हत्या कर देता है।“

प्रश्न 5 – लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या – क्या विशेषताएँ बताईं ?

उत्तर – लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है –

  • वीर पुरुष अपनी महानता का स्वयं बखान नहीं करते।
  • वे ब्राह्मण, देवता, गाय और प्रभु भक्तों पर पराक्रम नहीं दिखाते हैं।
  • स्वयं किए गए प्रसिद्ध कार्यों पर कभी अभिमान नहीं करते।
  • वीर पुरुष किसी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग नहीं करते।
  • वह अन्याय के विरुद्ध हमेशा खड़े रहते हैं।
  • वीर योद्धा शांत, विनम्र, धैर्यवान और साहसी होते हैं।

प्रश्न 6 – साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए। (CBSE 2016)

उत्तर – व्यक्ति के जीवन में आगे बढ़ने के लिए साहस और शक्ति आवश्यक तत्व हैं, यह सत्य है। हालांकि, यदि व्यक्ति में साहस, शक्ति के साथ-साथ विनम्रता भी होती है, तो वह कभी भी हार नहीं मानेगा और हारने की स्थिति में नहीं पहुंचेगा। विनम्रता की कमी में व्यक्ति आत्मशक्ति का दुरुपयोग करने लगता है और दूसरों को नुकसान पहुंचाता है। विनम्रता हमें दूसरों का सम्मान करने की सीख देती है। प्रभु श्री राम इसका जीवंत उदाहरण हैं। राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद कविता के माध्यम से देखें तो लक्ष्मण साहसी और शक्तिशाली हो सकते थे, परंतु उनमें विनम्रता की कमी थी। वहीं श्री राम साहसी और शक्तिशाली होने के साथ ही विनम्र भी थे। इसलिए, उन्होंने धैर्य के साथ परशुराम जी को अपनी बात समझाई और क्षमा मांगी, जिससे स्थिति और खराब नहीं हुई और परशुराम जी शांत हो गए।

प्रश्न 7 – भाव स्पष्ट कीजिए –

( क ) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।

उत्तर –

भावार्थ – भाव यह है की लक्ष्मण जी मुस्कुराते हुए मधुर वाणी से परशुराम जी पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि हे मुनि ! आप अपने अभिमान के वश में हैं। आप अपने आप को  इस पुरे संसार का एक मात्र योद्धा मान रहे हैं। किन्तु आप मुझे बार – बार अपना फरसा दिखा कर डरने की कोशिश कर रहे हैं। आपको देख कर ऐसा लगता है कि आप पहाड़ को अपनी एक फूंक से ही उड़ाना चाहते हैं अर्थात जैसे की एक ही फूंक में आप एक पहाड़ को नहीं हिला सकते उसी प्रकार आप मुझे एक बच्चा न समझे। मैं बच्चों की तरह आपके फरसे से डरने वालो में से नहीं हूँ।

 ( ख ) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

उत्तर –

भावार्थ – उत्तर – भाव यह है कि लक्ष्मण जी निडरता से परशुराम जी से कहते हैं कि मैं सीताफल की नवजात बतिया (फल) के समान निर्बल नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी के इशारे से डर जाऊँगा। मैंने आपके प्रति जो कुछ भी कहा वह आपको फरसे और धनुष-बाण से सुसज्जित देखकर ही अभिमानपूर्वक कहा अर्थयार्थ मैंने सब जान कर कहा है।

प्रश्न 8 – पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर – श्री तुलसीदास जी ¯हदी-साहित्य-आकाश के दीप्तमान नक्षत्रों में सबसे दीप्त नक्षत्रा हैं। उन्हें अवधी और ब्रजे दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है। अवधी भाषा की पराकाष्ठा तुलसी जी के रामचरित मानस के कारण है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है।

उन्होंने अपनी रचनाओं में मुहावरों और लोकोक्तियों का काफी प्रयोग किया है। उन्होंने बाल सुलभ बातों को काफी रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है। तुलसीदास जी की रचनाओं में हमें विभिन्न पर्यायवाची शब्द देखने को मिलते हैं, जिनसे उनकी रचनाओं का सौंदर्य काफी बढ़ जाता है।

तुलसीदास ने अधिकतर रचनाएं चौपाई, दोहों और छंद के रूप में लिखी हैं। 

तुलसीदास के काव्य में वीर रस एवं हास्य रस की सहज अभिव्यक्ति हुई है।  जैसे –

बालकु बोलि बधौं नहि तोहीं। केवल मुनिजड़ जानहि मोही।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाही। जे तरजनी देखि मर जाही।।

तुलसीदास जी रस सिद्ध और अलंकारप्रिय कवि हैं। उदाहरण के लिए तुलसीदास ने इन चौपाइयों में अलंकारों का प्रयोग कर इसे और भी सुंदर बना दिया है। इसकी भाषा में अनुप्रास अलंकार , रूपक अलंकार , उत्प्रेक्षा अलंकार व् पुनरुक्ति अलंकार की अधिकता पाई जाती है। जैसे

अनुप्रास – बालकु बोलि बधौं नहिं तोही।
उपमा – कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा।
वक्रोक्ति – अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनरुक्ति प्रकाश – पुनि-पुनि मोह देखाव कुठारू।

कुल मिलाकर हम ये कह सकते है की – उनकी भाषा शैली में मिठास है। मानस में प्रबन्ध शैली है। अनेक स्थानों पर उपदेशात्मक शैली है। मार्मिक स्थलों पर सूक्ति शैली है। मुहावरे तथा लोकोक्तियाँ भी भाषा को चार चाँद लगाते हैं। अलंकारों में उपमा, रूपक, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा, सन्देह आदि अनेक अलंकार स्वाभाविक रूप से रत्नजड़ित से होते गये हैं। तुलसी रससिद्ध के कवि हैं। उनकी काव्य-भाषा रस की खान है। छंद गेय हैं।

प्रश्न 9 – इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – तुलसीदास द्वारा रचित परशुराम – लक्ष्मण संवाद मूल रूप से व्यंग्य काव्य है उदाहरण के लिए –

( क ) बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥

इन पंक्तियों में लक्ष्मण जी परशुराम जी से धनुष के तोड़ने का व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि हमने अपने बचपन में ऐसे कई धनुषों की तोड़ा है तब तो अपने हम पर कभी क्रोध व्यक्त नहीं किया। तो आज इस धनुष पर आपको इतनी ममता क्यों आ रही है।

( ख ) मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

इन पंक्तियों में परशुराम जी क्रोध में लक्ष्मण जी से कहते हैं कि अरे राजा के बालक ! तू अपने माता – पिता को सोच में मत डाल। अर्थात अपनी मृत्यु को बुलावा न भेज। मेरा फरसा बड़ा ही भयानक है। यह गर्भ में जीने वाले बच्चो को भी मार सकता है।

प्रश्न 10 – निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए –

(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

उत्तर- अनुप्रास अलंकार –  ‘ब’ वर्ण का बार बार प्रयोग हुआ है।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

उत्तर-

अनुप्रास अलंकार – उक्त पंक्ति में ‘क’ वर्ण का बार-बार प्रयोग हुआ है।

उपमा अलंकार – कोटि कुलिस सम बचनु में उपमा अलंकार भी है। 

रचना और अभिव्यक्ति

11. “सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सकें ।“
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।

उत्तर: मेरी राय यह है कि क्रोध एक ऐसा भाव है जो सामाजिक जीवन में संतुलन की आवश्यकता को पूरा कर सकता है, लेकिन इसका उपयोग सावधानीपूर्वक और युक्तियुक्त तरीके से होना चाहिए। क्रोध एक प्राकृतिक भाव है जो हमें उत्तेजित करता है, हमारी संघर्ष क्षमता को जगाता है और अन्य लोगों के खिलाफ अनुचित कार्यों के खिलाफ आवाज उठाने की क्षमता प्रदान करता है।

हालांकि, हमें ध्यान देना चाहिए कि क्रोध को संयंत्रित रखना आवश्यक है ताकि हम स्वयं और दूसरों को हानि नहीं पहुंचाएं। हमें यह समझना चाहिए कि सभी स्थितियों में क्रोध नहीं उचित होता है और हमें स्वयं को नियंत्रित करना चाहिए। क्रोध को सकारात्मक रूप में उपयोग करने के लिए, हमें समझना चाहिए कि कैसे हम इसे संयंत्रित कर सकते हैं और यह सामाजिक न्याय, सच्चाई और सही लक्ष्य की ओर दिशा प्रदान कर सकता है।

इसलिए, मेरा मत है कि हमें क्रोध को समझना और उचित रूप से उपयोग करना चाहिए, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि क्रोध हमारे सामाजिक जीवन को अस्थायी और नकारात्मक रूप में प्रभावित कर सकता है। हमें सकारात्मक और विचारशील तरीके से संघर्ष करना चाहिए और अपने दूसरे व्यक्तियों के प्रति सम्मान और सहानुभूति बनाए रखनी चाहिए।

12. संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता?

उत्तर: यदि मैं राम होता तो परशुराम को अपनी सामर्थ्य को बता देता कि मैं कौन हूँ। इससे कोई अप्रिय ओर अपमानजनक परिस्थितियाँ ताल जातीं। मई उनसे कहता की मेरे प्रति अपनी शंका छोड़ दीजिए ओर मुझसे मत उलझिए। और यदि लक्ष्मण होता तो विनम्रता से चुपचाप परशुराम को बता देता कि आप शांत रहें, इन्हें (श्री राम) को न पहचानने की भूल कदापि न करें। श्री राम साक्षात् आपके भी आराध्य प्रभु हैं। यदि मैं परशुराम होता तो ये साधारण स प्रश्न तो जरूर सोचता कि असाधारण शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई सामान्य पुरुष तो हो ही नहीं सकता। इसलिए श्री राम से उनका परिचय विनम्रता पूर्वक पूछता जिससे सत्य का पता लग सकता।

13. अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर: इससे स्वयं करिए।

14. ‘दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए’-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।

उत्तर: एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम राम और दूसरे का नाम श्याम था। राम बहुत ही समझदार और बुद्धिमान था, जबकि श्याम थोड़ा कम अभिज्ञ और सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति था।

एक दिन, गांव में एक मेला आया। वहां पर एक रंगीन मेले में दिखाई देने के लिए खुबसूरत गुब्बारे थे। राम और श्याम दोनों ने गुब्बारे देख कर उन्हें खरीदने का फैसला किया।

राम ने एक बड़ा, खूबसूरत और विस्तृत गुब्बारा खरीदा, जबकि श्याम ने एक छोटे सा साधारण गुब्बारा चुना। वे अपने घरों की ओर चले गए और गुब्बारे उड़ाने लगे।

राम का बड़ा गुब्बारा आसमान में ऊंचे उड़ता था। लोग उसे देखकर वाह-वाह कर रहे थे और उसे प्रशंसा कर रहे थे। श्याम का छोटा गुब्बारा भी उड़ता था, लेकिन उसकी ऊंचाई और रंग न केवल छोटे बच्चों तक ही सीमित थी। लोग उसे ध्यान तक नहीं दे रहे थे।

श्याम थोड़ा निराश हो गया, लेकिन राम ने उसे हंसाया और कहा, “यार श्याम, तू देख नहीं रहा है की छोटे गुब्बारे में एक अपनी अलग ही खूबी होती है। यह छोटा गुब्बारा जितना कम ऊंचा उड़ रहा है, उतना ही सुंदर हो रहा है। उसका रंग और चमक भी अपने आप में एक अलग मिठास है।”

श्याम ने राम की बात सुनी और समझी की उसका दोस्त सही कह रहा है। उसने अपने छोटे से गुब्बारे की खूबियों को समझा और खुश हो गया।

यह कहानी हमें यह बताती है कि हर व्यक्ति की अपनी-अपनी क्षमताएं होती हैं, और हमें दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। छोटी क्षमता भी बड़ी उपलब्धियों को हासिल कर सकती है और खुद को अलग बना सकती है। हमें सभी को सम्मान और महत्व देना चाहिए, चाहे वह कितनी भी छोटी हों।

15. उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।

उत्तर: इससे स्वयं करिए।

16. अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?

उत्तर: अवधी भाषा अवध प्रदेश के अन्तर्गत बोली जाती है। इस बोली का क्षेत्र फतेहपुर, इलाहाबाद, सीतापुर, फैजाबाद, सुल्तानपुर,
प्रतापगढ़, बाराबंकी, उन्नाव, रायबरेली, आदि जिलों में फैला हुआ है।


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